पानी को आग कह के मुकर जाना चाहिए
पलकों पे अश्क बन के ठहर जाना चाहिए
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जिस का बदन है ख़ुश्बू जैसा जिस की चाल सबा सी है
पुकारता हूँ कि तुम हासिल-ए-तमन्ना हो
उन की महफ़िल में 'ज़फ़र' लोग मुझे चाहते हैं
क्या ढूँडने आए हो नज़र में
जो हुरूफ़ लिख गया था मिरी आरज़ू का बचपन
यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ
साँस लेने को ही जीना नहीं कहते हैं 'ज़फ़र'
तामीर-ए-ज़िंदगी को नुमायाँ किया गया
हम गरचे दिल ओ जान से बेज़ार हुए हैं
थक के पत्थर की तरह बैठा हूँ रस्ते में 'ज़फ़र'