है गुलू-गीर बहुत रात की पहनाई भी
तेरा ग़म भी है मुझे और ग़म-ए-तन्हाई भी
Allama Iqbal
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ज़हर है मेरे रग-ओ-पै में मोहब्बत शायद
जो हुरूफ़ लिख गया था मिरी आरज़ू का बचपन
सवाली
बातों से सिवा होती है कुछ वहशत-ए-दिल और
पुकारता हूँ कि तुम हासिल-ए-तमन्ना हो
ख़बर
वादी-ए-नील
ऐ बे-ख़बरी जी का ये क्या हाल है कल से
यारो हर ग़म ग़म-ए-याराँ है क़रीब आ जाओ
मैं लिपटता रहा हूँ ख़ारों से
हम गरचे दिल ओ जान से बेज़ार हुए हैं
मैं हूँ तेरे लिए बेनाम-ओ-निशाँ आवारा