हाए ये तवील ओ सर्द रातें
और एक हयात-ए-मुख़्तसर में
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
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Habib Jalib
Gulzar
Wasi Shah
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Jaun Eliya
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जिस का बदन है ख़ुश्बू जैसा जिस की चाल सबा सी है
थक के पत्थर की तरह बैठा हूँ रस्ते में 'ज़फ़र'
बातों से सिवा होती है कुछ वहशत-ए-दिल और
तामीर-ए-ज़िंदगी को नुमायाँ किया गया
क्या ढूँडने आए हो नज़र में
जो हुरूफ़ लिख गया था मिरी आरज़ू का बचपन
ख़बर
वो मेरी जान है दिल से कभी जुदा न हुआ
वादी-ए-नील
पानी को आग कह के मुकर जाना चाहिए
आ मिरे चाँद रात सूनी है