न मिले वो तो तलाश उस की भी रहती है मुझे
हाथ आने पे जिसे छोड़ दिया जाता है
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हम लोगों को अपने दिल के राज़ बताते रहते हैं
लगे थे ग़म तुझे किस उम्र में ज़माने के
आज तक उस की मोहब्बत का नशा तारी है
ज़बानें थक चुकीं पत्थर हुए कान
पत्थर न फेंक देख ज़रा एहतियात कर
ज़हरीली तख़्लीक़
एक लम्हे में कटा है मुद्दतों का फ़ासला
न मैं ने दस्त-शनासी का फिर किया दावा
हिज्र की रात मिरी जाँ पे बनी हो जैसे
तुम ही क्या जज़्ब हो गए मुझ में
कल थी ये फ़िक्र उसे हाल सुनाएँ कैसे
उस को ख़बर हुई तो बदल जाएगा वो रंग