आज तक उस की मोहब्बत का नशा तारी है
फूल बाक़ी नहीं ख़ुश्बू का सफ़र जारी है
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ख़ुशा वो दर्द के लम्हे कि तेरे जाने पर
बिखरे हुए तारों से मिरी रात भरी है
कम नहीं है ये अज़िय्यत कि अभी ज़िंदा हूँ
चराग़ ख़ुद ही बुझाया बुझा के छोड़ दिया
यादों की ज़ंजीरें
मुसाफ़िर हो तो सुन लो राह में सहरा भी आता है
दिल बहुत मसरूफ़ था कल आज बे-कारों में है
शम्अ जलते ही यहाँ हश्र का मंज़र होगा
तू कुछ भी हो कब तक तुझे हम याद करेंगे
इस दोशीज़ा मिट्टी पर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा कोई भी नहीं
बैठा ही रहा सुब्ह से में धूप ढले तक
जब आफ़्ताब न निकला तो रौशनी के लिए