शम्अ जलते ही यहाँ हश्र का मंज़र होगा
फिर कोई पा न सकेगा ख़बर-ए-परवाना
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किस लिए वो शहर की दीवार से सर फोड़ता
छुप छुप के कहाँ तक तिरे दीदार मिलेंगे
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
जल भी चुके परवाने हो भी चुकी रुस्वाई
दिल-आराम
न मैं ने दस्त-शनासी का फिर किया दावा
जहाँ में हम ने किसी से भी खुल के बात न की
देखने उस को कोई मेरे सिवा क्यूँ आए
घर जला लेता है ख़ुद अपने ही अनवार से तू
सफ़र भी दूर का है और कहीं नहीं जाना
ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई
तिरा मैं क्या करूँ ऐ दिल तुझे कुछ भी नहीं आता