तिरा मैं क्या करूँ ऐ दिल तुझे कुछ भी नहीं आता
बिछड़ना भी उसे आता है और मिलना भी आता है
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इस क़दर तेज़ न चल साँस उखड़ जाएगा
गुज़र ही जाएगी 'शहज़ाद' जो गुज़रनी है
न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
दिन निकलते ही वो ख़्वाबों के जज़ीरे क्या हुए
तुम्हारी बज़्म से भी उठ चले हैं दीवाने
फ़स्ल-ए-गुल ख़ाक हुई जब तो सदा दी तू ने
हाल उस का तिरे चेहरे पे लिखा लगता है
ख़ुशा वो दर्द के लम्हे कि तेरे जाने पर
शुमार मैं न करूँगा फ़िराक़ के शब ओ रोज़
जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया
गामज़न
हर तरफ़ फैली हुई थी रौशनी ही रौशनी