जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया
तब उस को पहली मुलाक़ात का ख़याल आया
Allama Iqbal
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ये न हो वो भूलने वाला भुला देना पड़े
ख़बर नहीं कि ख़ला किस जगह पे हो मौजूद
सोता जागता साया
मैं सुन रहा हूँ मगर दूसरों को कैसे सुनाऊँ
ख़ुद ही तस्वीर बनाता हूँ मिटा देता हूँ
आज़ाद था मिज़ाज तो क्यूँ घर बना लिया
दिल पर भी आओ एक नज़र डालते चलें
आरज़ूओं ने कई फूल चुने थे लेकिन
अन-कही
कुछ तेरे सबब थी मिरे पहलू में हरारत
इस क़दर तेज़ न चल साँस उखड़ जाएगा
इस आस पे सैलाब के सीने पे रवाँ हूँ