आरज़ूओं ने कई फूल चुने थे लेकिन
ज़िंदगी ख़ार-बदामाँ है इसे क्या कहिए
Habib Jalib
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Gulzar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
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ये न हो वो भूलने वाला भुला देना पड़े
सूरज की किरन देख के बेज़ार हुए हो
अब निभानी ही पड़ेगी दोस्ती जैसी भी है
वो जा चुका है तो क्यूँ बे-क़रार इतने हो
जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया
हाल उस का तिरे चेहरे पे लिखा लगता है
रात की नींदें तो पहले ही उड़ा कर ले गया
मैं अकेला हूँ यहाँ मेरे सिवा कोई नहीं
चाहता हूँ कि हो परवाज़ सितारों से बुलंद
हुज़ूर-ए-हुस्न ये दिल कासा-ए-गदाई है
जान मुक़द्दर में थी जान से प्यारा न था
छुप छुप के कहाँ तक तिरे दीदार मिलेंगे