आता है ख़ौफ़ आँख झपकते हुए मुझे
कोई फ़लक के ख़ेमे की रस्सी न काट दे
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(385) Peoples Rate This
कभी कभी छलक उठता है आब ओ रंग उन का
शम्अ जलते ही यहाँ हश्र का मंज़र होगा
आगे निकल गए वो मुझे देखते हुए
इस दोशीज़ा मिट्टी पर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा कोई भी नहीं
अस्ल में हूँ मैं मुजरिम मैं ने क्यूँ शिकायत की
वाक़िआ कुछ भी हो सच कहने में रुस्वाई है
मयस्सर फिर न होगा चिलचिलाती धूप में चलना
कोई तो रात को देखेगा जवाँ होते हुए
लगे थे ग़म तुझे किस उम्र में ज़माने के
हम लोगों को अपने दिल के राज़ बताते रहते हैं
यार होते तो मुझे मुँह पे बुरा कह देते
तेरे घर की भी वही दीवार थी दरवाज़ा था