यार होते तो मुझे मुँह पे बुरा कह देते
बज़्म में मेरा गिला सब ने किया मेरे बाद
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अब न वो शोर न वो शोर मचाने वाले
ख़ल्क़ ने छीन ली मुझ से मिरी तन्हाई तक
बहुत शर्मिंदा हूँ इबलीस से मैं
वो ख़ुश-नसीब थे जिन्हें अपनी ख़बर न थी
सितारे इस क़दर देखे कि आँखें बुझ गईं अपनी
ज़रा लबों के तबस्सुम से बज़्म गर्माएँ
गामज़न
कब तक कड़कती धूप में आँखें जलाएँ हम
चाहता हूँ कि हो परवाज़ सितारों से बुलंद
तीरगी ही तीरगी हद्द-ए-नज़र तक तीरगी
रूह की आग
दिल ओ दिमाग़ में एहसास-ए-ग़म उभार दिया