ये अलग बात ज़बाँ साथ न दे पाएगी
दिल का जो हाल है कहना तो पड़ेगा तुझ से
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Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
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न बस्तियों को अज़ीज़ रक्खें न हम बयाबाँ से लौ लगाएँ
मैं अपनी जाँ में उसे जज़्ब किस तरह करता
अक़्ल हर बात पे हैराँ है इसे क्या कहिए
छुप छुप के कहाँ तक तिरे दीदार मिलेंगे
चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की
भरपूर नहीं हैं किसी चेहरे के ख़द-ओ-ख़ाल
मंज़िल है कठिन दिल बहुत आराम-तलब है
बिगड़ी हुई इस शहर की हालत भी बहुत है
नक़्श-ए-हैरत बन गई दुनिया सितारों की तरह
आरज़ूओं ने कई फूल चुने थे लेकिन
इबलीस भी रख लेते हैं जब नाम फ़रिश्ते
आता है ख़ौफ़ आँख झपकते हुए मुझे