हुज़ूर-ए-हुस्न ये दिल कासा-ए-गदाई है
हूँ वो फ़क़ीर जिसे भीक भी न दे कोई
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मैं अपनी जाँ में उसे जज़्ब किस तरह करता
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
रहने दिया न उस ने किसी काम का मुझे
दरख़्तों पर कोई पत्ता नहीं था
वो कौन है उसे सूरज कहूँ कि रंग कहूँ
वाक़िआ ये है कि रस्ता और वीराँ हो गया
तुझ पे जाँ देने को तय्यार कोई तो होगा
शायद इसी बाइस हुईं पत्थर मिरी आँखें
तेरे सीने में भी इक दाग़ है तन्हाई का
मेरी ख़ातिर देर न करना और सफ़र करते जाना
गामज़न
चाहता हूँ कि हो परवाज़ सितारों से बुलंद