वाक़िआ ये है कि रस्ता और वीराँ हो गया
पेड़ तो अपनी तरफ़ से फूल बरसाते रहे
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अजब नहीं कि इसी बात पर लड़ाई हो
मैं तिरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता
चाहे अब आप भी मुझे आसेब ही कहें
पैकर-ए-गुल आसमानों के लिए बेताब है
करो बे-नूर महफ़िल-ए-इमरोज़
वो मुझे प्यार से देखे भी तो फिर क्या होगा
उट्ठी हैं मेरी ख़ाक से आफ़ात सब की सब
नक़्श-ए-हैरत बन गई दुनिया सितारों की तरह
टकराता है सर फोड़ता है सारा ज़माना
कोई तो रात को देखेगा जवाँ होते हुए
तुम्हारी बज़्म से भी उठ चले हैं दीवाने
सफ़र भी दूर का है और कहीं नहीं जाना