वो कौन है उसे सूरज कहूँ कि रंग कहूँ
करूँगा ज़िक्र तो ख़ुश्बू ज़बाँ से आएगी
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(560) Peoples Rate This
वो मिरी सुब्हों का तारा वो मिरी रातों का चाँद
इस राह से गुज़रे थे कभी अहल-ए-नज़र भी
डूब जाएँगे सितारे और बिखर जाएगी रात
भटकती हैं ज़माने में हवाएँ
कम नहीं है ये अज़िय्यत कि अभी ज़िंदा हूँ
सेहर लगता है पसीने में नहाया हुआ जिस्म
अपने ही अक्स को पानी में कहाँ तक देखूँ
चराग़ ख़ुद ही बुझाया बुझा के छोड़ दिया
हम कि इंसान नहीं आँखें हैं
मैं गुल-ए-ख़ुश्क हूँ लम्हे में बिखर सकता हूँ
शायद इसी बाइस हुईं पत्थर मिरी आँखें
अस्ल में हूँ मैं मुजरिम मैं ने क्यूँ शिकायत की