इस क़दर तेज़ न चल साँस उखड़ जाएगा
तय न कर राह-ए-तलब एक ही रफ़्तार से तू
Anwar Masood
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Parveen Shakir
Wasi Shah
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खुली फ़ज़ा में अगर लड़खड़ा के चल न सकें
शायद लोग इसी रौनक़ को गर्मी-ए-महफ़िल कहते हैं
चाहे अब आप भी मुझे आसेब ही कहें
मेरी ख़ातिर देर न करना और सफ़र करते जाना
बे-ताबी-ए-ग़म-हा-ए-दरूँ कम नहीं होगी
इस भरे शहर में आराम मैं कैसे पाऊँ
कुछ तज़किरा-ए-हुस्न से रौशन थे दर-ओ-बाम
शायद इसी बाइस हुईं पत्थर मिरी आँखें
गामज़न
हमारे शहर में है वो गुरेज़ का आलम
दिल बहुत मसरूफ़ था कल आज बे-कारों में है
ख़्वाहिशों की धूल से चेहरे उभरते ही नहीं