खुली फ़ज़ा में अगर लड़खड़ा के चल न सकें
तो ज़हर पीना है बेहतर शराब पीने से
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(429) Peoples Rate This
कल थी ये फ़िक्र उसे हाल सुनाएँ कैसे
नक़्श-ए-हैरत बन गई दुनिया सितारों की तरह
दिल-ए-फ़सुर्दा उसे क्यूँ गले लगा न लिया
लबों पे आ के रह गईं शिकायतें कभी कभी
शहर का शहर अगर आए भी समझाने को
कोई बताओ कि किस के लिए तलाश करें
तुम्हारी आरज़ू में मैं ने अपनी आरज़ू की थी
गामज़न
भूल कर भी कोई लेता नहीं अब नाम-ए-वफ़ा
हमारे पेश-ए-नज़र मंज़िलें कुछ और भी थीं
चाहता हूँ कि हो परवाज़ सितारों से बुलंद
दिल भी तो इक दयार है रौशन हरा-भरा