कोई बताओ कि किस के लिए तलाश करें
जहाँ छुपी हैं बहारें हमें ख़बर ही सही
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दरख़्तों पर कोई पत्ता नहीं था
प्यार के रंग-महल बरसों में तय्यार हुए
नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ
वाक़िआ ये है कि रस्ता और वीराँ हो गया
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
शहर का शहर अगर आए भी समझाने को
दिल भी तो इक दयार है रौशन हरा-भरा
ज़हरीली तख़्लीक़
ये समझ के माना है सच तुम्हारी बातों को
इस दौर-ए-बे-दिली में कोई बात कैसे हो
ज़बानें थक चुकीं पत्थर हुए कान
शौक़-ए-सफ़र बे-सबब और सफ़र बे-तलब