दिल पर भी आओ एक नज़र डालते चलें
शायद छुपे हुए हों यहीं दिन बहार के
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तुम्हारी आँख में कैफ़िय्यत-ए-ख़ुमार तो है
आरज़ू की बे-हिसी का गर यही आलम रहा
ठहर गई है तबीअत इसे रवानी दे
ख़बर नहीं कि ख़ला किस जगह पे हो मौजूद
उठीं आँखें अगर आहट सुनी है
दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो
खुली फ़ज़ा में अगर लड़खड़ा के चल न सकें
दिल से ये कह रहा हूँ ज़रा और देख ले
ज़हरीली तख़्लीक़
कोशिश है शर्त यूँही न हथियार फेंक दे
इबलीस भी रख लेते हैं जब नाम फ़रिश्ते
चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की