चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की
बोलती है तो बदल जाती है रंगत उस की
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दिल भी तो इक दयार है रौशन हरा-भरा
दिल पे ऐ दोस्त क़यामत सी गुज़र जाती है
पुराने दोस्तों से अब मुरव्वत छोड़ दी हम ने
लगे थे ग़म तुझे किस उम्र में ज़माने के
टकराता है सर फोड़ता है सारा ज़माना
तुझ में कस-बल है तो दुनिया को बहा कर ले जा
भरपूर नहीं हैं किसी चेहरे के ख़द-ओ-ख़ाल
उम्र भर अपने गिरेबाँ से उलझने वाले
मैं और तू
कुछ देखने की दिल में तमन्ना नहीं बाक़ी
तू कुछ भी हो कब तक तुझे हम याद करेंगे
उठीं आँखें अगर आहट सुनी है