तुझ में कस-बल है तो दुनिया को बहा कर ले जा
चाय की प्याली में तूफ़ान उठाता क्या है
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बे-हुनर हाथ चमकने लगा सूरज की तरह
ख़बर नहीं कि ख़ला किस जगह पे हो मौजूद
हुज़ूर-ए-हुस्न ये दिल कासा-ए-गदाई है
हर तरफ़ फैली हुई थी रौशनी ही रौशनी
फ़स्ल-ए-गुल ख़ाक हुई जब तो सदा दी तू ने
वीरान तो नहीं शब-ए-तारीक की फ़ज़ा
चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की
हमारे शहर में है वो गुरेज़ का आलम
जुलते हैं इक चराग़ की लौ से कई चराग़
शौक़-ए-सफ़र बे-सबब और सफ़र बे-तलब
हुस्न बाज़ार की ज़ीनत है मगर है तो सही
आता है ख़ौफ़ आँख झपकते हुए मुझे