जलते हैं इक चराग़ की लौ से कई चराग़
दुनिया तिरे ख़याल से रौशन हुई तो है
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Anwar Masood
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
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तीरगी ही तीरगी हद्द-ए-नज़र तक तीरगी
ये किस के आने के इम्काँ दिखाई देते हैं
बुझ गई शम्अ कटी रात गई सब महफ़िल
मैं और तू
आरज़ू की बे-हिसी का गर यही आलम रहा
कब तक कड़कती धूप में आँखें जलाएँ हम
अपने लिए तो ख़ाक की ख़ुश्बू है ज़िंदगी
ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई
आँख-मिचोली
झूटी बातें रहने दो
लेते हैं लोग साँस भी अब एहतियात से
इबलीस भी रख लेते हैं जब नाम फ़रिश्ते