झूटी बातें रहने दो
कौन किसी को याद आया
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डूब जाएँगे सितारे और बिखर जाएगी रात
ये किस ग़म से अक़ीदत हो गई है
जहाँ में हम ने किसी से भी खुल के बात न की
मयस्सर फिर न होगा चिलचिलाती धूप में चलना
अब तो साफ़ सुनता हूँ अपने दिल की हर धड़कन
मंज़िल पे जा के ख़ाक उड़ाने से फ़ाएदा
अस्ल में हूँ मैं मुजरिम मैं ने क्यूँ शिकायत की
यार होते तो मुझे मुँह पे बुरा कह देते
आरज़ू की बे-हिसी का गर यही आलम रहा
ख़ल्क़ बे-परवा ख़ुदा बंदों से तंग आया हुआ
उम्र भर सुनता रहूँ अपनी सदा की बाज़गश्त
दश्त में कैसी दीवारें