उम्र भर सुनता रहूँ अपनी सदा की बाज़गश्त
या तिरी आवाज़ भी आएगी मेरे कान में
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चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की
तेरे घर की भी वही दीवार थी दरवाज़ा था
उठीं आँखें अगर आहट सुनी है
तुझ में कस-बल है तो दुनिया को बहा कर ले जा
हुस्न बाज़ार की ज़ीनत है मगर है तो सही
आँखें न खुलें नूर के सैलाब में मेरी
पैकर-ए-गुल आसमानों के लिए बेताब है
फ़लक से घूरती हैं मुझ को बे-शुमार आँखें
बैठा ही रहा सुब्ह से में धूप ढले तक
चमक चमक के सितारो मुझे फ़रेब न दो
दिल पर भी आओ एक नज़र डालते चलें
वो जा चुका है तो क्यूँ बे-क़रार इतने हो