मंज़िल पे जा के ख़ाक उड़ाने से फ़ाएदा
जिन की तलाश थी मुझे रस्ते में मिल गए
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(392) Peoples Rate This
गुज़रने ही न दी वो रात मैं ने
दरख़्तों पर कोई पत्ता नहीं था
मुंतज़िर दश्त-ए-दिल-ओ-जाँ है कि आहू आए
ये चाँद ही तिरी झोली में आ पड़े शायद
इस क़दर तेज़ न चल साँस उखड़ जाएगा
वो कौन है उसे सूरज कहूँ कि रंग कहूँ
खुली फ़ज़ा में अगर लड़खड़ा के चल न सकें
रूह की आग
मैं सुन रहा हूँ मगर दूसरों को कैसे सुनाऊँ
शौक़-ए-सफ़र बे-सबब और सफ़र बे-तलब
कल थी ये फ़िक्र उसे हाल सुनाएँ कैसे
आज़ाद था मिज़ाज तो क्यूँ घर बना लिया