अब तो साफ़ सुनता हूँ अपने दिल की हर धड़कन
और क्या दिखाएगी ये तवील तन्हाई
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उस को ख़बर हुई तो बदल जाएगा वो रंग
बिगड़ी हुई इस शहर की हालत भी बहुत है
किस लिए वो शहर की दीवार से सर फोड़ता
ख़ल्क़ ने छीन ली मुझ से मिरी तन्हाई तक
ख़िज़ाँ जब आए तो आँखों में ख़ाक डालता हूँ
ख़ल्क़ बे-परवा ख़ुदा बंदों से तंग आया हुआ
हुज़ूर-ए-हुस्न ये दिल कासा-ए-गदाई है
कल थी ये फ़िक्र उसे हाल सुनाएँ कैसे
जाने किस सम्त से हवा आई
झूटी बातें रहने दो
अब निभानी ही पड़ेगी दोस्ती जैसी भी है
इस दोशीज़ा मिट्टी पर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा कोई भी नहीं