अगर दो दिल कहीं भी मिल गए हैं
ज़माने को शिकायत हो गई है
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(418) Peoples Rate This
अन-कही
एक से मंज़र देख देख कर आँखें दुखने लगती हैं
ये भी सच है कि नहीं है कोई रिश्ता तुझ से
डूब जाएँगे सितारे और बिखर जाएगी रात
बिगड़ी हुई इस शहर की हालत भी बहुत है
अब भी वही दिन रात हैं लेकिन फ़र्क़ ये है
मैं अपनी जाँ में उसे जज़्ब किस तरह करता
रौशन भी करोगे कभी तारीकी-ए-शब को
कमरों में छुपने के दिन हैं और न बरहना रातें हैं
फ़लक से घूरती हैं मुझ को बे-शुमार आँखें
रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया
जिस से दो रोज़ भी खुल कर न मुलाक़ात हुई