एक से मंज़र देख देख कर आँखें दुखने लगती हैं
इस रस्ते पर पेड़ बहुत हैं और हरा कोई भी नहीं
Allama Iqbal
Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Rahat Indori
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(430) Peoples Rate This
कुछ न कुछ हो तो सही अंजुमन-आराई को
सोता जागता साया
ये भी सच है कि नहीं है कोई रिश्ता तुझ से
मुझे बस इतनी शिकायत है मरने वालों से
अब तो इंसान की अज़्मत भी कोई चीज़ नहीं
बे-शुमार आँखें
हिज्र की रात मिरी जाँ पे बनी हो जैसे
मैं जो रोता हूँ तो कहते हो कि ऐसा न करो
मैं चाहता हूँ हक़ीक़त-पसंद हो जाऊँ
ये और बात इसे ज़िंदगी न कह पाएँ
जिस ने तिरी आँखों में शरारत नहीं देखी
वो कोई और है जिस ने तुझे चाहा होगा