मुझे बस इतनी शिकायत है मरने वालों से
वो बे-नियाज़ हैं क्यूँ याद करने वालों से
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फ़स्ल-ए-गुल ख़ाक हुई जब तो सदा दी तू ने
देखने उस को कोई मेरे सिवा क्यूँ आए
अजब नहीं कि इसी बात पर लड़ाई हो
मयस्सर फिर न होगा चिलचिलाती धूप में चलना
बैठा ही रहा सुब्ह से में धूप ढले तक
बे-ताबी-ए-ग़म-हा-ए-दरूँ कम नहीं होगी
चमक चमक के सितारो मुझे फ़रेब न दो
पास रह कर भी न पहचान सका तू मुझ को
जहाँ में हम ने किसी से भी खुल के बात न की
अपने लिए तो ख़ाक की ख़ुश्बू है ज़िंदगी
क्यूँ बुलाती है मुझे दुनिया उसी के नाम से