क्यूँ बुलाती है मुझे दुनिया उसी के नाम से
क्या मिरे चेहरे पे उस का नाम है लिक्खा हुआ
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ये सोच कर कि तेरी जबीं पर न बल पड़े
ये किस ग़म से अक़ीदत हो गई है
अब तो इंसान की अज़्मत भी कोई चीज़ नहीं
चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की
सुकून कुछ तो मिला दिल का माजरा लिख कर
टकराता है सर फोड़ता है सारा ज़माना
बुझ गई शम्अ कटी रात गई सब महफ़िल
दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो
ज़हरीली तख़्लीक़
दिल ओ नज़र पे तिरे बाद क्या नहीं गुज़रा
वाक़िआ कोई न जन्नत में हुआ मेरे ब'अद