अपने लिए तो ख़ाक की ख़ुश्बू है ज़िंदगी
लाज़िम नहीं कि आब-ओ-हवा ख़ुश-गवार हो
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(394) Peoples Rate This
शायद इसी बाइस हुईं पत्थर मिरी आँखें
उदास छोड़ गए कश्तियों को साहिल पर
रूह की आग
दिल-ए-फ़सुर्दा उसे क्यूँ गले लगा न लिया
ये न हो वो भूलने वाला भुला देना पड़े
न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
आज तक उस की मोहब्बत का नशा तारी है
यादों की ज़ंजीरें
चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की
कोई बताओ कि किस के लिए तलाश करें
ज़हरीली तख़्लीक़
हमारे शहर में है वो गुरेज़ का आलम