उदास छोड़ गए कश्तियों को साहिल पर
गिला करें भी तो क्या पार उतरने वालों से
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ख़ुद ही मिल बैठे हो ये कैसी शनासाई हुई
छुप छुप के कहाँ तक तिरे दीदार मिलेंगे
दिल-ए-फ़सुर्दा उसे क्यूँ गले लगा न लिया
चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की
आज तक उस की मोहब्बत का नशा तारी है
जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया
इसी बाइस ज़माना हो गया है उस को घर बैठे
तिरी तलाश तो क्या तेरी आस भी न रहे
बे-हुनर हाथ चमकने लगा सूरज की तरह
पास रह कर भी न पहचान सका तू मुझ को
लबों पे आ के रह गईं शिकायतें कभी कभी
मैं अकेला हूँ यहाँ मेरे सिवा कोई नहीं