मुसाफ़िर हो तो सुन लो राह में सहरा भी आता है
निकल आए हो घर से क्या तुम्हें चलना भी आता है
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चमक चमक के सितारो मुझे फ़रेब न दो
दिल ओ निगाह का ये फ़ासला भी क्यूँ रह जाए
दरिया कभी इक हाल में बहता न रहेगा
बस एक लम्हे में क्या कुछ गुज़र गई दिल पर
बे-ताबी-ए-ग़म-हा-ए-दरूँ कम नहीं होगी
एक दरख़्त
यूँ तो हम अहल-ए-नज़र हैं मगर अंजाम ये है
तू कुछ भी हो कब तक तुझे हम याद करेंगे
कुछ तज़किरा-ए-हुस्न से रौशन थे दर-ओ-बाम
फ़स्ल-ए-गुल ख़ाक हुई जब तो सदा दी तू ने
खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का
हम लोगों को अपने दिल के राज़ बताते रहते हैं