यूँ तो हम अहल-ए-नज़र हैं मगर अंजाम ये है
ढूँडते ढूँडते खो देते हैं बीनाई तक
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भरपूर नहीं हैं किसी चेहरे के ख़द-ओ-ख़ाल
वाक़िआ ये है कि रस्ता और वीराँ हो गया
तेरे सीने में भी इक दाग़ है तन्हाई का
खुले असरार उस पर जिस्म के आहिस्ता आहिस्ता
वो मिरे पास है क्या पास बुलाऊँ उस को
करो बे-नूर महफ़िल-ए-इमरोज़
तख़्ता-ए-दार पे चाहे जिसे लटका दीजे
दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो
डूब जाएँगे सितारे और बिखर जाएगी रात
यार होते तो मुझे मुँह पे बुरा कह देते
वो कोई और है जिस ने तुझे चाहा होगा
आँख-मिचोली