मैं चाहता हूँ हक़ीक़त-पसंद हो जाऊँ
मगर है इस में ये मुश्किल हक़ीक़तें हैं बहुत
Gulzar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(559) Peoples Rate This
बे-शुमार आँखें
कम नहीं है ये अज़िय्यत कि अभी ज़िंदा हूँ
मयस्सर फिर न होगा चिलचिलाती धूप में चलना
जब चल पड़े तो बर्क़ की रफ़्तार से चले
मेरी रुस्वाई में वो भी हैं बराबर के शरीक
बैठा ही रहा सुब्ह से में धूप ढले तक
सफ़र भी दूर का है और कहीं नहीं जाना
चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की
रहने दिया न उस ने किसी काम का मुझे
न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे
अगर दो दिल कहीं भी मिल गए हैं
तिरी तलाश तो क्या तेरी आस भी न रहे