न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे

न सही कुछ मगर इतना तो किया करते थे

वो मुझे देख के पहचान लिया करते थे

आख़िर-ए-कार हुए तेरी रज़ा के पाबंद

हम कि हर बात पे इसरार किया करते थे

ख़ाक हैं अब तिरी गलियों की वो इज़्ज़त वाले

जो तिरे शहर का पानी न पिया करते थे

अब तो इंसान की अज़्मत भी कोई चीज़ नहीं

लोग पत्थर को ख़ुदा मान लिया करते थे

दोस्तो अब मुझे गर्दन-ज़दनी कहते हो

तुम वही हो कि मिरे ज़ख़्म सिया करते थे

हम जो दस्तक कभी देते थे सबा की मानिंद

आप दरवाज़ा-ए-दिल खोल दिया करते थे

अब तो 'शहज़ाद' सितारों पे लगी हैं नज़रें

कभी हम लोग भी मिट्टी में जिया करते थे

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In Hindi By Famous Poet Shahzad Ahmad. is written by Shahzad Ahmad. Complete Poem in Hindi by Shahzad Ahmad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.