ज़मीन नाव मिरी बादबाँ मिरे अफ़्लाक
मैं इन को छोड़ के साहिल पे कब उतरता हूँ
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जो दिल में खटकती है कभी कह भी सकोगे
तुम्हारी आरज़ू में मैं ने अपनी आरज़ू की थी
आँखें न खुलें नूर के सैलाब में मेरी
खिले जो फूल तो मुँह छुप गया सितारों का
दरिया कभी इक हाल में बहता न रहेगा
तिरा मैं क्या करूँ ऐ दिल तुझे कुछ भी नहीं आता
ज़रा सा ग़म हुआ और रो दिए हम
वो मिरे पास है क्या पास बुलाऊँ उस को
इस आस पे सैलाब के सीने पे रवाँ हूँ
नक़्श-ए-हैरत बन गई दुनिया सितारों की तरह
बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर
जब चल पड़े तो बर्क़ की रफ़्तार से चले