हम दो क़दम भी चल न सके ख़ाक-ए-पा हुए
जो क़ाफ़िले के साथ गए जाने क्या हुए
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
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ये और बात इसे ज़िंदगी न कह पाएँ
एक दरख़्त
टकराता है सर फोड़ता है सारा ज़माना
यूँ ख़ाक की मानिंद न राहों पे बिखर जा
लोग ज़िंदा नज़र आते थे मगर थे मक़्तूल
कौन कहता है कि दरिया में रवानी कम है
आती है दम-ब-दम ये सदा जागते रहो
किस लिए वो शहर की दीवार से सर फोड़ता
अब तो इंसान की अज़्मत भी कोई चीज़ नहीं
दश्त में कैसी दीवारें
बे-हुनर हाथ चमकने लगा सूरज की तरह
जीने मरने के दरमियान एक साअत