यूँ ख़ाक की मानिंद न राहों पे बिखर जा

यूँ ख़ाक की मानिंद न राहों पे बिखर जा

किरनों की तरह झील के सीने में उतर जा

मत भूल कि अब भी है तिरी घात में सय्याद

सुनता है कोई पाँव की आवाज़ ठहर जा

मत देख तमन्ना की तरफ़ आँख उठा कर

अंधों की तरह नूर के दरिया से गुज़र जा

मंज़िल की तलब अपनी तरफ़ खींच रही है

और रात मुसाफ़िर से ये कहती है कि घर जा

इतना तो समझ क्या है तिरी राह में हाइल

आहू की तरह अपने ही साए से न डर जा

शायद कि कोई बरहना-पा हो तिरे पीछे

जाते हुए इस राह को काँटों से न भर जा

पत्थर नहीं आँखें तो ये आँसू हैं बड़ी चीज़

भीगे हुए फूलों की तरह और निखर जा

या दश्त में उस बज़्म की रौनक़ को न कर याद

या शहर की दीवार से सर फोड़ के मर जा

इक उम्र से रोया हूँ न तड़पा हूँ में 'शहज़ाद'

एहसास का बादल कभी बरसा है न गरजा

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In Hindi By Famous Poet Shahzad Ahmad. is written by Shahzad Ahmad. Complete Poem in Hindi by Shahzad Ahmad. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.