हम अपने हाल पर ख़ुद रो दिए हैं
कभी ऐसी भी हालत हो गई है
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जिस ने तिरी आँखों में शरारत नहीं देखी
अब मिरा दर्द मरी जान हुआ जाता है
यूँ तिरी याद में दिन रात मगन रहता हूँ
वो ख़ुश-नसीब थे जिन्हें अपनी ख़बर न थी
कैसे गुज़र सकेंगे ज़माने बहार के
भूल कर भी कोई लेता नहीं अब नाम-ए-वफ़ा
जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया
प्यार के रंग-महल बरसों में तय्यार हुए
तुम्हारी बज़्म से भी उठ चले हैं दीवाने
ख़्वाहिशों की धूल से चेहरे उभरते ही नहीं
शौक़-ए-सफ़र बे-सबब और सफ़र बे-तलब
वो मिरी सुब्हों का तारा वो मिरी रातों का चाँद