तिरी तलाश तो क्या तेरी आस भी न रहे
अजब नहीं कि किसी दिन ये प्यास भी न रहे
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चाहता हूँ कि हो परवाज़ सितारों से बुलंद
तन्हाई में आ जाती हैं हूरें मिरे घर में
देखने उस को कोई मेरे सिवा क्यूँ आए
ख़बर नहीं कि ख़ला किस जगह पे हो मौजूद
फ़स्ल-ए-गुल ख़ाक हुई जब तो सदा दी तू ने
मंज़िल है कठिन दिल बहुत आराम-तलब है
पुराने दोस्तों से अब मुरव्वत छोड़ दी हम ने
बे-शुमार आँखें
तमाम उम्र हवा फांकते हुए गुज़री
घबरा के आसमाँ की तरफ़ देखती थी ख़ल्क़
वो मिरे पास है क्या पास बुलाऊँ उस को
लबों पे आ के रह गईं शिकायतें कभी कभी