जिस के बाइस अभी ठंडक है मिरे सीने में
भड़क उठता हूँ अगर नाम लिया जाता है
Gulzar
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Faiz Ahmad Faiz
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फ़स्ल-ए-गुल ख़ाक हुई जब तो सदा दी तू ने
मुंतज़िर दश्त-ए-दिल-ओ-जाँ है कि आहू आए
इश्क़ वहशी है जहाँ देखेगा
ख़्वाहिशों की धूल से चेहरे उभरते ही नहीं
तुम्हारी आँख में कैफ़िय्यत-ए-ख़ुमार तो है
वो मुझे प्यार से देखे भी तो फिर क्या होगा
दिल बहुत मसरूफ़ था कल आज बे-कारों में है
पास रह कर भी न पहचान सका तू मुझ को
यार होते तो मुझे मुँह पे बुरा कह देते
टकराता है सर फोड़ता है सारा ज़माना
उठीं आँखें अगर आहट सुनी है
चाहता हूँ कि हो परवाज़ सितारों से बुलंद