जिस को जाना ही नहीं उस को ख़ुदा क्यूँ मानें
और जिसे जान चुके हो वो ख़ुदा कैसे हो
Rahat Indori
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Gulzar
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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टकराता है सर फोड़ता है सारा ज़माना
सुपुर्दगी का वो लम्हा कभी नहीं गुज़रा
हज़ार चेहरे हैं मौजूद आदमी ग़ाएब
इस दौर-ए-बे-दिली में कोई बात कैसे हो
हर दम तिरी शबीह थी आँखों के सामने
तुझ में कस-बल है तो दुनिया को बहा कर ले जा
किस लिए वो शहर की दीवार से सर फोड़ता
जो दिल में खटकती है कभी कह भी सकोगे
थोड़ा सा रंग रात के चेहरे पे डाल दो
तुझ पे जाँ देने को तय्यार कोई तो होगा
पैरहन चुस्त हवा सुस्त खड़ी दीवारें
ज़रा सा ग़म हुआ और रो दिए हम