हर दम तिरी शबीह थी आँखों के सामने
तन्हा भी हम नहीं थे तिरे साथ भी न थे
Wasi Shah
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
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कौन कहता है कि दरिया में रवानी कम है
तख़्ता-ए-दार पे चाहे जिसे लटका दीजे
ये किस के आने के इम्काँ दिखाई देते हैं
नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ
जब उस की ज़ुल्फ़ में पहला सफ़ेद बाल आया
पत्थर न फेंक देख ज़रा एहतियात कर
तू कुछ भी हो कब तक तुझे हम याद करेंगे
तुम्हारी आँख में कैफ़िय्यत-ए-ख़ुमार तो है
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
यूँ ख़ाक की मानिंद न राहों पे बिखर जा
आज तक उस की मोहब्बत का नशा तारी है