पैरहन चुस्त हवा सुस्त खड़ी दीवारें
उसे चाहूँ उसे रोकूँ कि जुदा हो जाऊँ
Ahmad Faraz
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(354) Peoples Rate This
उदास छोड़ गए कश्तियों को साहिल पर
वो कौन है उसे सूरज कहूँ कि रंग कहूँ
फ़लक से घूरती हैं मुझ को बे-शुमार आँखें
रुख़्सत हुआ तो आँख मिला कर नहीं गया
दुनिया में अंधेरों के सिवा और रहा क्या
तिरी तलाश तो क्या तेरी आस भी न रहे
बाग़ का बाग़ उजड़ गया कोई कहो पुकार कर
शब ढल गई और शहर में सूरज निकल आया
बुझ गई शम्अ कटी रात गई सब महफ़िल
हैराँ हूँ हासिदों को पता कैसे चल गया
ठहर गई है तबीअत इसे रवानी दे
शक अपनी ही ज़ात पे होने लगता है