ख़्वाजा मीर 'दर्द' कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ख़्वाजा मीर 'दर्द'

ख़्वाजा मीर 'दर्द' कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ख़्वाजा मीर 'दर्द'
नामख़्वाजा मीर 'दर्द'
अंग्रेज़ी नामKhwaja Meer Dard
जन्म की तारीख1721
मौत की तिथि1785
जन्म स्थानDelhi

नामा-ए-दर्द को मिरे ले कर

कुंज-कावी जो की सीने में ग़म-ए-हिज्राँ ने

हम ये कहते थे कि अहमक़ हो जो दिल को देवे

देख मुझे तबीब आज पूछा जो हालत-ए-मिज़ाज

ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है!

ज़िक्र मेरा ही वो करता था सरीहन लेकिन

ज़ालिम जफ़ा जो चाहे सो कर मुझ पे तू वले

या-रब ये क्या तिलिस्म है इदराक-ओ-फ़हम याँ

यक-ब-यक नाम ले उठा मेरा

वहदत में तेरी हर्फ़ दुई का न आ सके

वाए नादानी कि वक़्त-ए-मर्ग ये साबित हुआ

उन लबों ने न की मसीहाई

टुक ख़बर ले कि हर घड़ी हम को

तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा

तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले

तर-दामनी पे शैख़ हमारी न जाइयो

तमन्ना तिरी है अगर है तमन्ना

शम्अ के मानिंद हम इस बज़्म में

साक़िया! याँ लग रहा है चल-चलाव

साक़ी मिरे भी दिल की तरफ़ टुक निगाह कर

सल्तनत पर नहीं है कुछ मौक़ूफ़

सैर-ए-बहार-ए-बाग़ से हम को मुआ'फ़ कीजिए

सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ

रौंदे है नक़्श-ए-पा की तरह ख़ल्क़ याँ मुझे

रात मज्लिस में तिरे हुस्न के शोले के हुज़ूर

क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था

क़त्ल से मेरे वो जो बाज़ रहा

क़ासिद नहीं ये काम तिरा अपनी राह ले

ने गुल को है सबात न हम को है ए'तिबार

नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तिरी हरगिज़

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