तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
बराबर है दुनिया को देखा न देखा
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क़त्ल से मेरे वो जो बाज़ रहा
हाल मुझ ग़म-ज़दा का जिस जिस ने
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरी
बावजूदे कि पर-ओ-बाल न थे आदम के
हो गया मेहमाँ-सरा-ए-कसरत-ए-मौहूम आह
'दर्द' के मिलने से ऐ यार बुरा क्यूँ माना
अज़िय्यत मुसीबत मलामत बलाएँ
वहदत में तेरी हर्फ़ दुई का न आ सके
वाए नादानी कि वक़्त-ए-मर्ग ये साबित हुआ
नामा-ए-दर्द को मिरे ले कर
क़ासिद नहीं ये काम तिरा अपनी राह ले
उन लबों ने न की मसीहाई