क़त्ल से मेरे वो जो बाज़ रहा
किसी बद-ख़्वाह ने कहा होगा
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Habib Jalib
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1187) Peoples Rate This
ने गुल को है सबात न हम को है ए'तिबार
कहते न थे हम 'दर्द' मियाँ छोड़ो ये बातें
तेरी गली में मैं न चलूँ और सबा चले
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा
खुल नहीं सकती हैं अब आँखें मिरी
सैर-ए-बहार-ए-बाग़ से हम को मुआ'फ़ कीजिए
मैं जाता हूँ दिल को तिरे पास छोड़े
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
शम्अ के मानिंद हम इस बज़्म में
बंद अहकाम-ए-अक़्ल में रहना
तर-दामनी पे शैख़ हमारी न जाइयो
वाए नादानी कि वक़्त-ए-मर्ग ये साबित हुआ