ने गुल को है सबात न हम को है ए'तिबार
किस बात पर चमन हवस-ए-रंग-ओ-बू करें
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रौंदे है नक़्श-ए-पा की तरह ख़ल्क़ याँ मुझे
टुक ख़बर ले कि हर घड़ी हम को
तमन्ना तिरी है अगर है तमन्ना
मुझ को तुझ से जो कुछ मोहब्बत है
दिल भी ऐ 'दर्द' क़तरा-ए-ख़ूँ था
कुंज-कावी जो की सीने में ग़म-ए-हिज्राँ ने
हम ये कहते थे कि अहमक़ हो जो दिल को देवे
दुश्मनी ने सुना न होवेगा
या-रब ये क्या तिलिस्म है इदराक-ओ-फ़हम याँ
हाल मुझ ग़म-ज़दा का जिस जिस ने
साक़िया! याँ लग रहा है चल-चलाव
रात मज्लिस में तिरे हुस्न के शोले के हुज़ूर