टुक ख़बर ले कि हर घड़ी हम को
अब जुदाई बहुत सताती है
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दर्द तू जो करे है जी का ज़ियाँ
तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
इश्क़ हर-चंद मिरी जान सदा खाता है
हम ये कहते थे कि अहमक़ हो जो दिल को देवे
देख मुझे तबीब आज पूछा जो हालत-ए-मिज़ाज
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ
शम्अ के मानिंद हम इस बज़्म में
तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
जान से हो गए बदन ख़ाली
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था
अर्ज़-ओ-समा कहाँ तिरी वुसअत को पा सके
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं